चरण स्पर्श का महत्व
सनातन संस्कृति, विज्ञान व धर्म के मिश्रण से पोषित होती हुई भारतीय सभ्यता में परिलक्षित होती है | भारतीय संस्कृति में वैज्ञानिकता को आधार बनाकर ही कर्मकांड व नियमो की रूपरेखा बनाई गई | सनातन संस्कृति में सदैव चरित्र ही पूजनीय रहा है | चरित्र के निर्माण का प्रथम सोपान चरण स्पर्श , अहम् का त्याग कर समर्पण के भाव को व्यक्तित्व में प्रतिष्ठित करता है | नन्हा बालक जैसे ही पग रखना आरंभ करता है वैसे ही उनकी माताए उन्हें हाथ पकड़कर, बड़ो के चरण स्पर्श करने को प्रेरित करती है ताकि उनका आचरण श्रेष्ठ हो | माता – पिता , गुरुजनों तथा अपने से ज्येष्ठ जन का चरण स्पर्श ,उनके प्रति आदर के भाव को प्रगट करता है और यही भाव उनके व्यक्तित्व को विनम्र बनाकर उनकी मानसिक चेतना को सात्विक विचारधारा से युक्त करता है |
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चरण स्पर्श व हाथ जोड़कर प्रणाम करना अभिवादन करने के दो अलग प्रकार है | प्रणाम मुख्य रूप से छः प्रकार के होते हैं -
· अष्टांग- धरती को शरीर के आठ अंग- घुटने, पेट, छाती, हाथ, कोहनी, ठुड्डी, नाक तथा कनपटी का स्पर्श कराया जाता है।
· साष्टांग- धरती को शरीर के छः अंग- पैर, घुटने, हाथ, ठुड्डी, नाक और कनपटी का स्पर्श होता है।
· पंचांग- धरती को शरीर के पांच अंग- घुटने, छाती, ठुड्डी, कनपटी और माथा आदि का स्पर्श होता है।
· दंडवत- धरती से शरीर के दो अंगों , घुटने तथा माथा का स्पर्श होता है।
· नमस्कार -हाथ जोड़कर माथे को झुकाते हुए श्रद्धा का भाव लाना |
· अभिनंदन- हाथ जोड़कर अभिवादन करना।
ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्राम च पुस्तकं।
वसुंधरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।
ब्राह्मण की गुदा(मूलाधार), शंख, शालिग्राम भगवान, पुस्तक और स्त्री की छाती धरती पर लगने से दोष होता है व धरती पर भार पड़ता है। ब्राह्मण बिना आसन के (जिनमें ब्राह्मणत्व हो), स्त्रियों के स्तन एवं कुक्षी),शंख ,शालिग्राम या शिवलिंग ,अनामिका में पहनी हुई पवित्री, और जप की हुई रुद्राक्ष की माला यह पांच वस्तुओ का भार पृथ्वी वहन नहीं कर सकती| इसलिए उसका स्पर्श धरती से नहीं होना चाहिए। क्योंकि स्त्री का गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है तथा गर्भ से ही सृष्टि का चक्र चलता है। यहीं से मानव की उत्पत्ति होती है और उसके वक्ष से जीवन को पोषण मिलता है। अतः स्त्रियों को साष्टांग प्रणाम (दंडवत) निषिद्ध है।
जब हम किसी आदरणीय व्यक्ति के चरण स्पर्श करते है तो आशीर्वाद के रूप में उनका हाथ हमारे सिर के उपरी भाग को और हमारा हाथ उनके चरण को स्पर्श करता है | ऐसी मान्यता है कि इससे उस पूजनीय व्यक्ति की सकारात्मक उर्जा हमारे शरीर में प्रवेश करती है | इससे हमारा आध्यात्मिक तथा मानसिक विकास होता है।
इसका वैज्ञानिक पक्ष इस तरह है: सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना गया है | गुरुत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा सदैव उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती है. यानी शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती है| दक्षिणी ध्रुव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है तथा पैरों की ओर ऊर्जा का केंद्र बन जाता है| पैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने को ही हम 'चरण स्पर्श' कहते हैं।
चरण स्पर्श एक प्रकार का सूक्ष्म व्यायाम भी है | झुककर पैर छूने, घुटने के बल बैठकर प्रणाम करने या साष्टांग दंडवत से शरीर लचीला बनता है तथा आगे की ओर झुकने से सिर में रक्त- प्रवाह बढ़ता है |
चरण स्पर्श के अनेक लाभ है परन्तु सबसे बड़ी बात यही है कि यह हमारी संस्कृति का एक पुष्ट प्रतीक है | जो मानव में मानवता का संचार कर धर्मयुक्त आचरण करने को प्रेरित करती है |