बुधवार, 27 दिसंबर 2023


                                                            चरण स्पर्श का महत्व

 

सनातन संस्कृति, विज्ञान व धर्म के मिश्रण से पोषित होती हुई भारतीय सभ्यता में परिलक्षित होती है भारतीय संस्कृति में वैज्ञानिकता को आधार बनाकर ही कर्मकांड व नियमो की रूपरेखा बनाई गई सनातन संस्कृति में सदैव चरित्र ही पूजनीय रहा है | चरित्र के निर्माण का प्रथम सोपान चरण स्पर्श , अहम् का त्याग कर समर्पण के भाव को व्यक्तित्व में प्रतिष्ठित करता है | नन्हा बालक जैसे ही पग रखना आरंभ करता है वैसे ही उनकी माताए उन्हें हाथ पकड़कर, बड़ो के चरण स्पर्श करने को प्रेरित करती है ताकि उनका आचरण श्रेष्ठ हो | माता पिता , गुरुजनों तथा अपने से ज्येष्ठ जन का चरण स्पर्श ,उनके प्रति आदर के भाव को प्रगट करता है और यही भाव उनके व्यक्तित्व को विनम्र बनाकर उनकी मानसिक चेतना को सात्विक विचारधारा से युक्त करता है |

  • चरण स्पर्श व हाथ जोड़कर प्रणाम करना अभिवादन करने के दो अलग प्रकार है प्रणाम मुख्य रूप से छः प्रकार के होते हैं -

    ·         अष्टांग- धरती को शरीर के आठ  अंग- घुटने, पेट, छाती, हाथ, कोहनी, ठुड्डी, नाक तथा  कनपटी का स्पर्श कराया  जाता है।

    ·         साष्टांग- धरती  को शरीर के छः अंग- पैर, घुटने, हाथ, ठुड्डी, नाक और कनपटी का स्पर्श होता है।

    ·         पंचांग- धरती  को शरीर के पांच अंग- घुटने, छाती, ठुड्डी, कनपटी और माथा आदि का स्पर्श होता है।

    ·         दंडवत- धरती से शरीर के दो अंगों घुटने तथा  माथा का स्पर्श होता है।

    ·         नमस्कार -हाथ जोड़कर माथे को झुकाते हुए श्रद्धा का भाव लाना

    ·         अभिनंदन-   हाथ जोड़कर अभिवादन करना। 

     

    ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्राम च पुस्तकं।

    वसुंधरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं।

     

     ब्राह्मण की गुदा(मूलाधार), शंख, शालिग्राम भगवान, पुस्तक और स्त्री की छाती धरती  पर लगने से दोष होता है व धरती पर भार पड़ता है।  ब्राह्मण बिना आसन के (जिनमें ब्राह्मणत्व हो), स्त्रियों के स्तन एवं कुक्षी),शंख ,शालिग्राम या शिवलिंग ,अनामिका में पहनी हुई पवित्री, और जप की हुई रुद्राक्ष की माला यह पांच वस्तुओ  का भार पृथ्वी वहन नहीं कर सकतीइसलिए उसका स्पर्श धरती  से नहीं होना चाहिए।  क्योंकि स्त्री का गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है तथा  गर्भ से ही सृष्टि का चक्र चलता है। यहीं से मानव की उत्पत्ति होती है और उसके वक्ष से जीवन को पोषण मिलता है। अतः स्त्रियों  को साष्टांग प्रणाम  (दंडवत) निषिद्ध है।

     

     

     जब हम किसी आदरणीय व्यक्ति के चरण स्पर्श करते है तो आशीर्वाद के रूप  में  उनका हाथ हमारे सिर के उपरी भाग को और हमारा हाथ उनके चरण को स्पर्श करता है | ऐसी मान्यता है कि इससे उस पूजनीय व्यक्ति की सकारात्मक उर्जा  हमारे शरीर में प्रवेश करती है | इससे हमारा आध्यात्मिक तथा मानसिक विकास होता है। 

     इसका वैज्ञानिक पक्ष इस तरह है:  सिर को उत्तरी ध्रुव और पैरों को दक्षिणी ध्रुव माना गया है गुरुत्व ऊर्जा या चुंबकीय ऊर्जा सदैव  उत्तरी ध्रुव से प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव की ओर प्रवाहित होकर अपना चक्र पूरा करती है. यानी शरीर में उत्तरी ध्रुव (सिर) से सकारात्मक ऊर्जा प्रवेश कर दक्षिणी ध्रुव (पैरों) की ओर प्रवाहित होती हैदक्षिणी ध्रुव पर यह ऊर्जा असीमित मात्रा में स्थिर हो जाती है तथा पैरों की ओर ऊर्जा का केंद्र बन जाता हैपैरों से हाथों द्वारा इस ऊर्जा के ग्रहण करने को ही हम 'चरण स्पर्श' कहते हैं। 

    चरण स्पर्श एक प्रकार का सूक्ष्म व्यायाम भी है | झुककर पैर छूने, घुटने के बल बैठकर प्रणाम करने या साष्टांग दंडवत से शरीर लचीला बनता है तथा आगे की ओर झुकने से सिर में रक्त- प्रवाह बढ़ता है |  

    चरण स्पर्श के अनेक लाभ है परन्तु सबसे बड़ी बात यही है कि यह हमारी संस्कृति का एक पुष्ट प्रतीक है | जो मानव में मानवता का संचार कर धर्मयुक्त आचरण करने को प्रेरित करती है |

     

     


     

     



सोमवार, 28 अगस्त 2023




                                                             तुलसी गौड़ा


एकांत की पीड़ा को विशाल वट वृक्ष में परिवर्तित करने की कला आपको प्रकृति की देवी बना सकती है ,यह तुलसी गौड़ा के जीवन को देखकर जाना जा सकता है | बहुत कम आयु में पिता की मृत्यु होने के बाद तुलसी ने अपनी मां और बहन के साथ काम करना शुरू कर दिया। तुलसी जब लगभग 11 साल की थी तब उनका विवाह हुआ । परंतु कुछ समय बाद तुलसी गौड़ा के पति की भी मृत्यु हो गई । पीड़ा के जीवन से जो बीज फूटा उसने बंजर धरती को पेड़ों से भर दिया |

तुलसी गौड़ा ने किशोर आयु मे ही अपने घर के पीछे की  बंजर भूमि  को घने जंगल में बदल दिया था । वन विभाग से जुड़े रहे 86 साल के रेड्‌डी बताते हैं कि पेड़ पौधों  को पहचानने की कला तुलसी गौड़ा मे बेमिसाल है |  पेड़ -पौधों से जुड़ा जो ज्ञान पुस्तकों मे नहीं मिलता वह तुलसी गौड़ा को पता होता है | इस बात से प्रभावित होकर रेड्‌डी ने तुलसी को अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया | स्थानीय लोग उन्हें पेड़ों की देवी (द गॉडेस ऑफ ट्रीज) कहने लगे। तुलसी ने सरकारी नर्सरी में 65 वर्षों तक सेवाएं दीं। 1998 में आधिकारिक तौर पर रिटायर होने के बाद भी वे सलाहकार के रूप में सक्रिय हैं और पेड़-पौधों से जुड़ी मूल्यवान जानकारियां साझा करती हैं।

स्थानीय परिषद ने उनके घर के बाहर लकड़ी का पुल बना दिया है ताकि वे छोटी सी धारा को पार कर सकें। पर तुलसी इसका प्रयोग नहीं करतीं, उन्हें धारा के बीच से गुजरना ही अच्छा लगता है। वह कहती है जितना भी जीवन शेष है,पेड़ों के बीच बीते |‘सबसे अच्छी मौत वही होगी जो एक घनी शाखाओं वाले पेड़ के नीचे हो और दोबारा जन्म मिले तो एक बड़े पेड़ के रूप में धरती पर आना चाहेंगी। पेड़ - पौधों से धरती को हरा - भरा करने के लिए तुलसी गौड़ा को इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्ष मित्र पुरस्कार प्रदान किया गया | यह अवार्ड तुलसी को साल 1986 मे दिया गया था। इस पुरस्कार को आईपीवीएम पुरस्कार के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1986 में इस दस्तावेज़ की शुरुआत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा की गई थी। वर्ष 1999 में कर्नाटक राज्योत्सव पुरस्कार तथा  2021 में राष्ट्रपति श्री रामनाथ जी द्वारा तुलसी गौड़ा को पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया गया।



मंगलवार, 1 अगस्त 2023

सुधा मूर्ति - विद्वत्ता व विनम्रता का दुर्लभ संयोग

 


अपनी बचत के दस हजार रुपए को करोड़ो मे परिवर्तित करने वाली सुधा मूर्ति शिक्षित वर्ग से लेकर गृहणी तक के लिए प्रेरणा का स्रोत है | आभासी पटल पर उनके जीवन से जुड़ी बाते बहुत चर्चा मे रहती है उनका सौम्य सरल व्यक्तित्व जन - सामान्य को आश्चर्य मे डालता है कि वह शिक्षित ,सफल व धनवान होने के साथ इतनी विनम्र , हंसमुख व सनातन संस्कृति से जुड़ी हुई कैसे है ? 

सुधा मूर्ति लेखिका होने के साथ ही सामाजिक कार्यकर्ता भी है | राष्ट्रपति द्रोपदी  मुर्मू द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित सुधा मूर्ति को 2006 मे पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त हो चुका है | 

ढेरो उपलब्द्धियो की धनी सुधा जी ने अपने पति के साथ मिलकर दस हज़ार रूपए से  इंफ़ोसिस की स्थापना 2 जुलाई 1981 में की |    

B.V. Bhoomaraddi college of Engineering & Technology मे पहली महिला छात्रा होने के कारण  सुधा जी को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा |कॉलेज के अंदर महिलाओ के लिए वाशरूम नहीं था | प्राचार्य द्वारा तीन नियम बताए गए कि उन्हे केवल साड़ी पहननी होगी दूसरा यह की वह कैन्टीन नहीं जाएगी और तीसरा यह कि वह लड़कों से बात नहीं करेगी | सुधा जी ने सभी नियमों का पालन किया | पहले ही वर्ष मे सुधा जी ने प्रथम श्रेणी प्राप्त की तो छात्र स्वयं आकर उनसे बात करने लगे |

टाटा मोटर्स लिमिटेडजिसे पहले टाटा इंजीनियरिंग एंड लोकोमोटिव कंपनी ( टेल्को ) के नाम से जाना जाता था, 1974 मे सुधा जी ने टेल्को कंपनी का विज्ञापन देखा कि  यह नौकरी केवल पुरूषों के लिए है | यह  बात सुधा जी को उचित नहीं लगी और उन्होंने पोस्टकार्ड मे लिंगभेद के विरोध मे आपत्ति लिखकर सीधे जे आर डी टाटा को भेज दिया इस आपत्ति पत्र के बाद कंपनी के नियम मे बदलाव हुआ | बाद मे सुधा मूर्ति टेल्को कंपनी की प्रथम महिला इंजीनियर बनी |   इससे यह प्रेरणा मिलती है कि -

" अपने आसपास की परिस्थितियों मे किए गए छोटे बदलाव बड़ी क्रांति को उत्पन्न करते है |" 

 

            सुधा जी ने अपने एक  इंटरव्यू में कहा कि वह शुद्ध शाकाहारी हैं और आम तौर पर अपना भोजन साथ रखती हैं क्योंकि उन्हें चिंता है कि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के भोजन के लिए एक ही चम्मच का उपयोग किया जाता है और यह मेरे दिमाग पर बहुत  बोझ डालता है। उन्होंने आगे कहा कि जब हम बाहर जाते हैं, तो मैं केवल शाकाहारी रेस्तरां खोजती हूं या मैं खाने-पीने की चीजों से भरा एक बैग ले जाती हूं। मैं खाने के लिए तैयार सामान ले जाती हूं, जो बस पानी में गर्म करके बन जाए। सुधा जी के इस इंटरव्यू से सोशल मीडिया पर उन्हे ट्रोल किया गया जबकि इस बात को लेकर ट्रोल करने का कोई मतलब नहीं है | बहुत से लोग शुद्ध शाकाहारी होते है और वह ऐसे बर्तन मे खाना पसंद नहीं करते जिसमे मांसाहार परोसे जाने की आशंका हो |

असल मे बात कुछ और ही है , हाल ही मे नारायण मूर्ति ने अपने एक इंटरव्यू मे बताया की जब वह प्लेन से यात्रा कर रहे थे और वहाँ करीना कपूर भी थी उनके प्रशंसक उनको हेलो कह रहे थे परन्तु करीना कपूर ने अपने प्रशंसको को अनदेखा कर दिया यह बात मुझे ठीक नही लगी | व्यक्ति को विनम्र होना चाहिए | नारायण मूर्ति  की  इस बात का बदला, सुधा मूर्ति को ट्रोल करके लिया गया | साफ़ ह्रदय की सुधा जी अपनी बात बिना लाग –लपेट के कहती है| संस्कारी ,शिक्षित व उन्नतशील समाज में सुधा मूर्ति का प्रेरक व्यक्तित्व अनुकरणीय है |

 

 © संगीता राजपूत श्यामा



                                                            चरण स्पर्श का महत्व   सनातन संस्कृति , विज्ञान व धर्म के मिश्रण से पोषित हो...